U TURN

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

धरम-करम

ट्रेन स्‍टेशन से छूटते ही चाय, चुरमुरे, चूरण-चटनी, पापड़ बेचने वाले ट्रेन में सवार हो लिए. अब अगले कुछ स्‍टेशनों तक इन्‍हें अपने तिलिस्‍मी झोलों में भरी ये चटर-पटर सवारियों को बेचनी थी और फिर झोला हल्‍का होने पर कोई दूसरी ट्रेन पकड़ कर वापस अपने ठिकाने पर आना था. ये सब बेचने वालों में ज्‍यादातर कम उम्र के लड़के, छोटी बच्चियां या फिर बूढ़े लोग ही रहते हैं. पर वक्‍़त की मजबूरी शायद आज उस औरत को पटरियों पर हर रोज यूं ही दौड़ती इस जिंदगी के बीच खुद की जिंदगी तलाशने पर मजबूर कर ले आयी थी. उसके थैले मे आलू के चिप्‍स, पापड़ और कुछ छुट-मुट सामान था. फीके से लाल रंग की साड़ी पहने ये औरत लोगों के बीच आवाज लगा कर चिप्‍स और पापड़ बेच रही थी. रोजमर्रा की सवारियों से शायद उसका परिचय हो चला था जो उससे कल की चिप्‍सों में थोड़े तेज मसाला होने की शिकायत कर रहे थे और पूछ रहे थे कि वो मुरमुरा नहीं लाई आज ? ये आंखें शर्मदार थीं या कहिए कि खुद इन पटरियों पर दौड़ती मजबूर जिंदगी के हमराह थे....जो उसकी देह पर नहीं सिर्फ सामान पर केन्द्रित थे. पर चार-पांच लोग इस डिब्‍बे में आज शायद नए थे. उनके लिए चलती ट्रेन में चिप्‍स और पापड़ बेचती औरत अजूबा थी....बस फिर क्‍या था. इनका ध्‍यान चिप्‍स पर न होकर उसकी देह पर था. औरत को सामान बेचता देख उन्‍हें न जाने कैसा रोमांच चढ़ा कि आपस में आंखों में बात करके चिप्‍स के लिए आवाज दी....औरत के झोले में क्‍या क्‍या है ? कौन चीज कितने की है ? किसमे मसाला कम है, किसमें ज्‍यादा है? ये मंहगा है ये सस्‍ता है! ये कितने में दोगी, वो कितने में दोगी ! एक जब झोले को टटोलकर सवाल-जवाब कर रहा था तो बाकी की आंखे उसके शरीर का नाप ले रही थीं. एक शोहदा तो छत के हैंडल से लटका हुआ भीड़ का बहाना करता हुआ बार-बार औरत के शरीर से सट कर मुस्‍कुरा रहा था. औरत इस वाहियाती को नज़रअंदाज कर बार-बार पूछ रही थी 'आपको क्‍या लेना है भाईसाहब....आपका जो दिल करे दे दीजिएगा'. इससे पहले कि बोगी के बाकी लोग उनकी इस वाहियाती को भांप कर कुछ करते उस तिलकधारी लड़के ने दस का नोट थमाते हुए फिर एक बार उसे जानबूझकर छुआ और बोला 'चल चिप्‍स दे दे'. सारी वाहियातियां इस अंदाज में की जा रही थीं जैसे कुछ न किया जा रहा हो. औरत ने झट से एक चिप्‍स का पैकेट उसे थमाया और वहां से तेजी से हटी. उसके हंटते ही चारों-पांचों के चेहरे पर एक निर्लज्‍ज हंसी का समंदर हिलोरें मारने लगा. 'अबे क्‍या जबरदस्‍त माल था........','साले अब तो इसी ट्रेन से चलेंगे रोज'......अब तक लोगों के बर्दाश्‍त से बाहर हो चला था. इससे पहले कि लोग उठ कर कोई बवाल मचाते.....तभी सभी ने देखा कि थोड़ी दूर जाकर वो औरत एकदम से लौटी और उस तिलकधारी को दस रूपए वापस करते हुए बोली ये चिप्‍स मत खाना....'माफ करना भैया जल्‍दी मैं बताना भूल गई.....जो चिप्‍स आपने लिया है उसमें प्‍याज और लहसन डला है.....आप पूजा पाठ वाले आदमी लगते हैं...आपका धरम करम भ्रष्‍ट न हो' ये रहने दो और ये रहे आपके दस रूपए. औरत ने चिप्‍स का पैकेट उसके हाथ से वापस लिया और झोले में डाल अगले स्‍टेशन पर उतर गई. चारों -पांचों के चेहरे पर अब खामोशी थी. सवारियां सोच रही थीं कि धरम करम आखिर है क्‍या ?

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