U TURN

रविवार, 30 दिसंबर 2012

संवेदना और शोक के समंदर में डूबी दिल्‍ली करेगी न्‍यू ईयर का स्‍वागत सनी लिओन के साथ ?

भारतीय मूल की कनेडियन पोर्न स्‍टार सनी लिओन नववर्ष की पूर्व संध्‍या पर दिल्‍ली में एक स्‍टेज शो करने जा रही हैं. पूरा देश जिस गैंग रेप की घटना के बाद इस वक्‍त नारी अस्मिता और सम्‍मान के लिए उबल रहा है ठीक उसी समय एक पोर्न स्‍टार के देश की राजधानी में होने जा रहे स्‍टेज शो ने एक नई बहस को जन्‍म दे दिया है. ये शो 31 दिसंबर की रात बाराखंबा रोड़ स्थित होटल ललित में आयोजित होगा. जहां कुछ लोग इसे नारी देह की स्‍वतंत्रता से जुड़ा मसला मान कर देख रहे हैं तो कईयों को इसमें कानूनी रूप से कोई गलत बात नज़र नहीं आती है. पर वहीं एक बड़ा तबका ऐसे लोगों का है जो एक पोर्न स्‍टार के शो को हलक से नीचे नहीं उतार पा रहा है. निश्‍चित ही समाज की तमाम वर्जनाएं टूट रही हैं और नए प्रतिमान स्‍थापित हो रहे हैं. पर क्‍या सनी लिओन ही वह सेलेब्रिटी है जिसके साथ दिल्‍ली को न्‍यू ईयर सेलीब्रेट करना चाहिए ?

      तमाम लोग सनी लिओन जैसी पोर्न स्‍टार को नारी देह की स्‍वतंत्रता का प्रतीक मान रहे हैं. इसमें मुझे शक है कि कोई पोर्न स्‍टार जिस नारी देह की स्‍वतंत्रता का दम भरती है वह वाकई किसी प्रकार की स्‍वतंत्रता है. स्‍वतंत्रता और व्‍यवसाय में फर्क है. हां वे स्‍वतंत्र हो सकती हैं अपने देश और अपने समाज में. वहां तो पहले ही सेक्‍स को लेकर इतनी वर्जनाएं नहीं हैं. फिर यह कैसी स्‍वतंत्रता है? हम कितना भी इसके पक्ष में तर्क करें पर अंतत: वह स्‍त्री को एक उपभोग की वस्‍तु से ज्‍यादा कुछ स्‍थापित नहीं कर पाती हैं. और यहीं से शुरू होती है स्‍त्री को मात्र एक देह समझने की संस्‍कृति.

एक दूसरा प्रश्‍न जो इस बहस में कुछ लोग उठा रहे हैं वह यह है कि क्‍या सनी लिओन जैसी पोर्न एक्‍ट्रेस के कारण बलात्‍कार जैसे अपराधों में कोई इजाफा होगा?  दरअसल प्रश्‍न भविष्‍य में परिणामों का नहीं है बल्कि प्रश्‍न है कि हम अपने आस-पास स्‍त्री की कौन सी छवी को स्‍थापित कर रहे हैं. मैं यहां संस्‍कृति और इतिहास की दुहाई नहीं देना चाहूंगा कि साहब हमारी संस्‍कृ्ति में ये होता था या स्‍त्री को ऐसे देखा जाता था. मैं यहां आपकी, मेरी और हम सबकी बात करना चाहूंगा. क्‍योंकि संस्‍कृति पर बहस करेंगे तो वह बहस भी विवादास्‍पद हो जाऐगी क्‍योंकि हमारा इतिहास भी ऐसे असंख्‍य दृष्‍टांतो से भरा पडा है जहां स्‍त्री को केवल भोग की वस्‍तु के रूप में देखा और समझा गया है. प्रश्‍न हमारा और आज का है कि आज हम स्‍त्री को क्‍या समझते हैं ? एक उपभोग की वस्‍तु या समाज का एक सम्‍मानीय अंग? स्‍तु   की, मेरी और हम सबकी बत

हम इस सत्‍य से नहीं भाग सकते कि इस वर्ष गूगल में भारतीयों ने जिस शख्स का नाम सबसे ज्‍यादा सर्च किया वह सनी लिओन ही हैं. बेशक होंगी. समाज में जब बीज ही आक के बोए जा रहे हों तो आम कहां से होंगे. क्‍या सनी लिओन एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं जो महेश भट्ट ने पूरी दुनिया की अभिनेत्रियों को छोड़कर मात्र सनी को चुना. यह केवल भारतीय समाज में सेक्‍स को लेकर सदियों की गहरी बैठी कुंठाओं को भुनाने का जरिया मात्र है. अब हमें देखना होगा कि क्‍या यह समस्‍या है? तो मेरे नजरिए से यकीनन है.....सेक्‍स के लिए वाजिब खुला स्‍पेस अवश्‍य ही होना चाहिए. जितनी अनावश्‍यक वर्जनाएं हैं जरूर टूटनी चाहिएं. पर इसके कुछ नियम तय करने होंगे. क्‍योंकि हर चीज सही या गलत देश काल ओर परिस्थितियों से तय होती है. हमारा समाज (जिसमें कि देश का गांव देहात और वो हिस्‍सा भी शामिल है जहां औरतों को पराए मर्द को अपना चेहरा तक नहीं दिखाने के संस्‍कार/संस्‍कृति प्रचलित हैं) पोर्न स्‍टार्स को स्‍वीकारने के लिए परिपक्‍व नहीं हुआ है. इसके लिए एक दूसरे ही समाज की आवश्‍यकता है. जो‍कि भारत में फिलहाल संभव नहीं है. जहां हमारे घरों में स्‍त्री-पुरूष संबंध अभी भी जंजीरों में उलझे हों वहां किसी पोर्न स्‍टार के बूते नारी की स्‍वतंत्रता की दुहाई मात्र ढकोसला ही रह जाती है. बहुत से सज्‍जन सनी लिओन के सेलेब्रिटी बनाने पर की जा रही आपति पर बहस करते हुए तर्क देते हैं कि भाई यह भी एक प्रोफेशन है इसमें क्‍या बुराई है? इस पर बांग्‍लादेश की लेखिका तस्‍लीमा नसरीन इन लोगों से तीखा प्रश्‍न करते हुए पूछती हैं कि जब आप पॉर्न स्टार को एक सेलेब्रिटी बनाते हैंतो आप एक एस्ट्रानॉटइंजीनियर या डॉक्टर बनाने की बजाय अपनी बेटियों को भी एक पार्न स्टार बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ? सवाल वाजिब है और बहुत संभव है कि इसका उत्‍तर उन लोगों के पास नहीं होगा.

सनी लियोन को लाना एक लॉबी और एक विचार-पक्ष के लोगों की सोची समझी रणनीति ही है....और इसकी शुरूआत महेश भट्ट अपनी फिल्‍म जिस्‍म 2 से पहले ही कर चुके हैं. उन्‍होंने बरसों से कुंठा में जी रहे भारतीय समाज को एक सेक्‍स के बडे सिंबल से परिचय करवा दिया है. ये एक शुरूआत भर थी जिसे अब बाजार पूरी तरह भुनाने को तैयार बैठा है. फिल्‍म के बाद जितने एंडोर्समेंट सनी लिओन को भारतीय बाजार से मिले हैं वह वाकई हैरतंगेज हैं. बिग बास में तो प्रतिभागियों के लिए पहली शर्त ही विवादास्‍पद होना है. कुछ दिनों पूर्व देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में सनी लिओन के चित्रों से अटे मैनफोर्स कोंडोम कंपनी के पूरे पूरे पृष्‍ठ के रंगीन विज्ञापन अभी सभी को याद ही होंगे. अब सनी लिओन भारत में दिल्‍ली वालों को नये साल की खुशियां मनाने का सलीका सिखाने आ रही हैं. ये बस एक शरूआत है....दुनिया भर की पोर्न इंडस्‍ट्री भारत में अरबों रूपए का बड़ा बाजार देख रही है और महेश भट्ट जैसे हमारे देसी एजेंट उनके आगमन को अवतार साबित करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे.

बेशक इस स्‍टेज शो के टिकट इतने मंहगे हैं कि इस शो में देश का धनाढ्य तबका ही शामिल होगा पर क्‍या ये धनाढ्य और तथाकथित ‘सभ्रांत’ तबका इस समाज का हिस्‍सा नहीं है? वे कौन लोग हैं जो संवदेना और शोक में डूबे शहर के बीच से निकल कर इस जश्‍न में शामिल होंगे? क्‍या उन्‍हें यकीन है कि उनकी बच्चियां सुरक्षित हैं? क्‍या वे ये समझते हैं कि दिल्‍ली और पूरा देश यूं ही शोर कर रहा है ?क्‍या ये डिसकनेक्‍टेड लोग हैं? या देश और समाज से कोई सरोकार न रखने वाले लोग ये केवल और केवल अय्याशी है. हम अय्याशी को हवा देंगे तो बलात्‍कार जैसे अपराध बढेंगे ही. परंतु अब अगर आप मुझसे पूछने लगें कि क्‍या मेरे पास इस बात के कोई प्रमाण मौजूद है कि सनी लिओन के शो से निकलने के बाद कितने लोगों ने बलात्‍कार किए तो साहब इस वाहियात प्रश्‍न का उत्‍तर न होने के लिए मैं पहले ही क्षमा मांग लेता हूं. सनी लिओन भले ही बलात्‍कार जैसे अपराधों के लिए उत्‍तरदायी न हो पर वह स्‍त्री की वह क्षवि खड़ी नहीं करती जिससे कि हम एक स्‍त्री को सम्‍मान की दृष्टि से देख पाएं.

बाजार से किसी को सीधे तौर पर कोई खतरा नहीं दिखाई देता है. यही बाजार की कला है कि वह आपको ज़हर भी इस अदा से बेचता है कि आप उसे अमृत मान कर खरीद लेते हैं. जिस स्‍वतंत्रता और स्‍त्री अधिकार के नाम पर नंगापन समाज में सींचा जा रहा है वह अभी दिखाई नहीं दे रहा. सब नशे में हैं और आधुनिकता के नग्‍न नृत्‍य में मग्‍न हैं. जब तक 'शीला की जवानी' और 'मुन्‍नी बदनाम हुई' और 'लौंडिया पटाएंगे मिस्‍ड कॉल से' जैसे गीत बनेंगे और समाज उन्‍हें गुनगुनाएगा, शादी बयाह में बजाएगा तब तक हम औरत के प्रति सम्‍मान का वातावरण सुनिश्चित नहीं कर सकते. पूरी बेहयाई से स्‍त्री को महज एक प्रोडक्‍ट बना कर रख दिया है हमारी फिल्‍मों, टीवी और विज्ञापन की दुनिया ने. और हम नशे में हैं और इस नशे में ये भूल रहे हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए जो प्रतिमान स्‍थापित कर रहे हैं वह उस पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर सकते हैं. हमारी ये जरूरत से ज्‍यादा ‘आजाद ख्‍याल’ गुमराह जीवन शैली ही सामाजिक समस्‍याओं की जड़ बन रही है. अगर नैतिक और चारित्रिक पतन जैसी किसी चीज का अस्तित्‍व है तो वह इसी समय घटित हो रही है.

मुझे मालूम है कि सनी का ये शो नहीं रूकेगा, और ये भी संभव है कि आने वाले दिनों में इस पोर्न स्‍टार सहित और कई पोर्न स्‍टार्स के शो भारत में होंगे, ये भी हो सकता है कि जल्‍द ही भारत में वैध रूप से पोर्न फिल्‍में बननी शुरू हो जाएं, ऐसी भी स्थिति आ सकती है कि गरीबी से मजबूर होकर हमारे देश की बेटियां इस पेशे में आने लगें, एक दिन ऐसा भी आ सकता है भारत की पोर्न फिल्‍मों के बाजार का टर्न ओवर विश्‍वभर में सबसे ज्‍यादा हो जाए, तब भी कुछ लोग उसे आर्थिक प्रगति ही कहेंगे....सब यूं ही चलता रहा तो सब कुछ संभव है. अब देश को तय करना है कि वह कैसा भविष्‍य चाहता है और फिलहाल दिल्‍ली को तय करना है कि क्‍या वह दामिनी की मृत्‍यु के शोक के बीच नये साल का स्‍वागत सनी लिओन के साथ करेगी?

(ये लेखक के निजी विचार हैं इनसे सभी का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) 

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

आक्रोश और समाधान के बीच रायसीना का युवा आंदोलन

शहर की फिजां में जब दरिंदे खुले आम घूम रहे हों और कानून और व्‍यवस्‍था के इंतजामात नाकाफी साबित होने से पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा हो तो क्‍या कोई खामोशी से घर के भीतर बैठा रह सकता है. कॉमन मैन को देश में हमेशा फॉर ग्रांटेड ही लिया जाता रहा है. पर सिस्‍टम अक्‍सर भूल जाता है कि ‘दे आर रेजिलिएंट बाय फोर्स नॉट बाय च्‍वाइस’. खामोशी को मजबूरी समझने की समझ ने ही हमें आज इस मुकाम पर ला दिया है. पर अब इस देश की युवा शक्ति को ये हालत स्‍वीकार नहीं है. तथाकथित ‘बडों’ और ‘मैच्‍योर’ लोगों द्वारा युवाओं को गैर जिम्‍मेदार कह कर बार बार खारिज किया जाता रहा. पर आज इन्‍हीं गैर जिम्‍मेदार युवाओं की थोड़ी सी हिल गई तो न्‍याय के लिए अपनी बुलंद आवाज से जर्रे जर्रे को हिला कर रख दिया. आज 20 हजार लड़के-लड़कियां राजपथ पर न्‍याय की मांग को लेकर इस कसम के साथ उतरे कि जब तक उन्‍हें उनका हक नहीं मिल जाता वे जमीन नहीं छोडेंगे. 



मैंने खुद सुबह 09.00 बजे से अब तक के घटनाक्रम को अपनी आंखों से देखा और जिया....आज जो रायसीना की पहाडियों पर हुआ वो आज तक नहीं हुआ था. गुस्‍से का गर्दोगुबार उठा वो बस उठता ही चला गया, रायसीना की पहाडी पर ठीक हुक्‍मरानों के दरो-दीवार पर न्‍याय की आवाज बुलंद कर रही युवा शक्ति पर पानी की तोप के प्रहार, आंसू गैस के गोले, हवाई फायरिंग और लाठी चार्ज किया गया. दर्जनों लड़के लडकियां घायल हुए. शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे बच्‍चों, लडकियों और युवाओं पर पुलिस का हर जुल्‍म उनकी अदम्‍य शक्ति के आगे बौना साबित रहा. प्रशासन की बौखलाहट साफ देखी जा सकती थी और शायद सरकार भी इसे कोई राजनीतिक आंदोलन मानने की भूल कर रही थी. विजय चौक गुस्‍से में उबल रहा था और कोई सामने आकर इन आंदोलनरत युवाओं को एक बेहतर कल का वायदा करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. दमनचक्र चलता रहा लोग घायल होते रहे पर डटे रहे, लोग आते रहे और हर तरफ सिर्फ न्‍याय मांगते सिर बढ़ते रहे. रायसीना की पहाडियां जंग के मैदान में तब्‍दील होती गईं. बलात्‍कारियों के खिलाफ सख्‍़त से सख्‍़त कानून, फास्‍ट ट्रैक कोर्ट में स्‍पीडी ट्रायल, दिल्ली रेप केस के अपराधियों को फांसी की सजा और एक चुस्‍त प्रशासन की मांग लेकर सुबह शुरू हुई मुहिम इस वक्‍त भी इंडिया गेट पर जारी है. सवाल बहुत हैं पर जबाव कहीं नहीं है. ;;;; ;;;  



      सब हैरान हैं कि ये सब हुआ कैसे ?  दरअसल कुछ युवाओं ने चंद रोज पहले फेसबुक पर तय किया कि 21 तारीख को सुबह 09 बजे इंडिया गेट पर एक प्रोटेस्‍ट गैदरिंग होगी...... और देखते ही देखते हजारों लोगों ने खुद आने और अपने सगे संबंधियों और मित्रों को साथ लाने का वायदा किया और आयोजकों की उम्‍मीद से कहीं ज्‍यादा संख्‍या और उत्‍साह से आए. युवाओं द्वारा प्रयोग किए गए नारे और हाथों में पकडे स्‍लोगनों से उनके दिल का दर्द साफ समझा जा सकता था. यहां आने वालों की औसम उम्र 20 से 22 वर्ष रही होगी. हां उन्‍हें लीड़ थोडी बडी उम्र के साथी ही कर रहे थे. 

आज का यूथ प्रोटैस्‍ट शायद आर्गेनाइज्‍ड नहीं था. इसीलिए थोड़ा बेतरतीब भी था.....पर कुछ चीजें बेतरतीब ही सही होती हैं. तरतीब लगाने वाले लोग कुछ खास बदल नहीं पाते. ये किसी राजनीतिक दल या एक एनजीओ द्वारा संचालित नहीं था. इसे कोई एक व्‍यक्ति भी लीड़ नहीं कर रहा था. बस एक जज्‍़बा उन्‍हें आपस में बांधे हुए था. ये नया दौर है...जहां तकनीक ने आज विजय चौक को तहरीर चौक में तब्‍दील कर दिया है. भर सर्दी में दिल्‍ली के कौने कौने से 8.30 बजे से युवाओं की टोलियां कोई मौज मस्‍ती करने सड़क पर नहीं उतरी थी. पानी के गोलों और आंसू गैस के गोलों के सामने भी एक दूसरे का हाथ थामे डटे रहने वाले युवा शायद संकेत दे रहे हैं कि उनके धैर्य की परीक्षा न ली जाए. सब चलता है.....अब नहीं चलेगा. हजारों युवा सड़क पर जब दमन झेल रहे थे तब देश के बुद्धिजीवी लाइव टेलीकास्‍ट देख रहे थे. और हां शायद अभी भी कुछ लोग इसे दूध का उफान समझ कर जल्‍द बैठ जाने की गलती कर रहे थे.

प्रदर्शन के दौरान बढ़ते दबाव को देखते हुए भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अचानक ठंडे पानी की तेज धार से प्रहार शुरू हो गए....भर ठंड में गीले कपडों में युवाओं के धैर्य की परीक्षा ली जाती रही. फिर शुरू हुआ लाठी चार्ज, स्‍कूली बच्‍चों और लड़कियों पर भी जमकर लाठियां भांजी गईं और फिर अश्रु गैस के गोलों की फायरिंग....हर तरफ धुंआ और आंखों में जलन. अचानक एक गोला मेरे नजदीक खडी एक लड़की के पैर पर आकर लगा....लड़की गिरती है और पैर से खून की धार निकल पड़ी. कुछ युवाओं ने उसे उठा कर एम्‍बुलेंस में पहुंचाया... तभी दो तीन और धमाके हुए.... भगदड़ हुई और देखा कि इस फायरिंग में कई लोग जख्‍मी हो चुके हैं. भीड़ का रेला कुछ गज पीछे हटा....कुछ लोग और घायल हुए.... थोड़ी देर बाद जब पानी की धार बंद हुई....युवाओं की ये फौज फिर से समरभूमि के फ्रंट पर मौजूद थी. सारा दिन ये गुरिल्‍ला युद्ध विजय चौक पर जारी रहा. पर आग दिल में लगी थी सो पीछे हटना गवांरा नहीं था...सो हक की जिद जारी रही. एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन को मासूमों पर हमला कर प्रशासन ने स्‍वयं इसे आक्रोश की पराकाष्‍ठा तक पहुंचा दिया. जहां जुबान से बात हो सकती थी वहां लाठी चल रही थी. खैर शाम तक कुछ कुर्सियां हिलीं और प्रेस वार्तांए हुईं ...कुछ को सस्‍पेंड किया गया, तमाम नए वायदे किए गए. एक बात समझ नहीं आती ....जब तक बवाल ने मचे हम कुछ क्‍यों नहीं करते?

टीआरपी की भूख मीडिया को भीड़ के पीछे चलने और सनसनी को हवा देने को मजबूर कर देती है. आज भी वही हुआ सुबह 10 बजे तक जब सब कुछ शांतिपूर्ण था कुछ बेनाम से टीवी चैनल और कुछ प्रेस फोटोग्राफर मैदान में थे....और युवाओं के गगनभेदी नारे भी नक्‍कार खाने में तूती की तरह बोल रहे थे. शांतिपूर्ण प्रदर्शन की कवरेज पर कहां टीआरपी मिलती है साहब. पर दस बजते-बजते रायसीना की तस्‍वीर बदलने लगी. भर सर्दी में भी माहौल में तपिश बढ़ रही थी....पुलिस अटैक की तैयारी कर चुकी थी. हम देख सकते थे एक पुलिस बस के ऊपर मचान बनाए कुछ मीडिया कर्मी लगातार फोन कर अपने साथियों को बुलाने में जुटे थे. बस फिर क्‍या था.....कुछ मिनटों में ही तमाम ओबी वैन ने पड़ाव डाल लिया. और लाइव रिपोर्टिंग शुरू. कुछ ने तो इसे अपनी मुहिम बताने का अभियान भी चलाया हुआ है. अगर थोडी भी गैरत मीडिया में बची हो तो ये राजनीति बंद कर दें.

युवा जब भी कुछ नया करते हैं तो उससे उपजी उम्‍मीदों को खामख्‍याली ही समझा जाता है....इस बार भी ऐसा हो सकता है. पर अब वक्‍त बदल रहा है.....इस देश को अब युवा शक्ति ही चलाएगी. चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो या सामाजिक हो....युवा अब हर मोर्चे पर मुखर हो रहा है. जितना इसे नज़रअंदाज किया जाएगा ये उतना ही प्रखर होगा.....और सबसे अच्‍छी बात ये है कि युवा किसी मुद्दे पर जुटने से पहले जात धर्म और बिरादरी की पड़़ताल नहीं करता है उसका धर्म उसका युवा होना ही है.  ये आंदोलन पूरी तरह युवा शक्ति का आंदोलन है. आज के प्रदर्शन में कोई राजनीतिक दल दूर दूर तक नज़र नहीं आया. लेकिन एक प्रश्‍न आज का आंदालन पीछे छोड़ गया है इस आंदोलन में मैच्‍योर और उम्रदराज लोग नज़र नहीं आ रहे हैं. क्‍या ये लड़ाई केवल युवाओं की है ? युवा शक्ति दरअसल कितनी जिम्‍मेदार और संवेदनशील है ये कोई भी तभी जान सकता है जब वह उनके साथ अश्रु गैस के गोले झेले, पानी की तोप के आगे डटे या लाठी खाए. सेमिनार में भाषण देना या घरों के अंदर उपदेश देना बहुत आसान है.

ये आंदोलन एक शुरूआत भर है...यकीनन ये आधी आबादी का पूरा इंकलाब था. पर हां, इसकी दिशा को लेकर हमें सचेत रहना होगा. दिशा भटकते ही कोई भी आंदोलन अपना महत्‍व खो देता है. किसी साफ नेतृत्‍व के अभाव में यह संकट इस आंदोलन पर भी हावी है. इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे युवाओं को अब जल्‍द से जल्‍द आपस में एक व्‍यवस्था बनानी होगी जिसमें वे मिलकर तय कर सकें कि कब क्‍या और कितना करना है ताकि ये आंदोलन अपनी ऊर्जा न खोए और न बिखरे...क्‍योंकि दिल्‍ली से शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज अभी देश के कौने-कौने तक पहुंचनी है. हजारों बलात्‍कार पीडिताएं अभी न्‍याय के इंतजार में हैं.

इस आंदोलन का एक उद्देश्‍य जनता को जागरूक करना भी है. जो संवेदनाएं मर चुकी हैं या सो चुकी हैं उन्‍हें जगाना भी है. इंसानियत हर दिल में अभी मरी नहीं है. पर जिनके दिल में मर गई है उनके लिए मातम मनाने का वक्‍त नहीं है अब हमारे पास. हमें अलख जगानी होगी....जो दूसरे का दर्द समझते हैं वे हाथ मिलाएं और आगे बढ़ें. जिस समस्‍या से हम जूझ रहे हैं वह प्रशासनिक बहुत बाद में पहले मानसिक और फिर सामाजिक भी है. सरकार बहुत बाद में आती है. हां, सड़क पर चलता हर आदमी पुलिस है यदि वह किसी लड़की के साथ ज्‍यादती होते हुए देख कर विरोध करता है,  उसकी सहायता करता है. और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह भी अपराध में अपराधी का साथ ही दे रहा है. हर व्‍यक्ति को खुद की जिम्‍मेदारी भी समझनी होगी.

और हां, मैं समझता हूं कि आज जो हुआ उससे व्‍यवस्‍था ने सबक लिया होगा. शायद आज युवा दुष्यंत जी के शब्‍दों में यही कहना चाहते हैं कि

‘महज़ हंगामा खड़ा करना मेरा महसद नहीं,
      मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.....’