U TURN

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

'कीड़ों की मौत'


फिर एक धमाका हुआ, 
कहां हुआ इससे क्या फर्क पड़ता है. 
मरे इस बार भी कीड़े-मकौड़े ही, 
सभी इंसान सुरक्षित हैं जेड़ प्लस में, 

इंसान अभी व्‍यस्‍त हैं
अपने घडियाली आंसू बहाने में,
व्‍यस्‍त हैं कीड़े मकौडों की जिंदगी की कीमत लगाने में,
दो-चार लाख बहुत रहेंगे न ?
इतना हो हल्ला क्यों ? 
आज पहली बार मरे हो क्या ,
या फिर ये आखिरी बार है ?

हां हां, हमें खबर थी, इत्तला भी दिया था 
अब किस-किस का ध्यान रखें, 
बहुत बड़ा देश है, बम फट ही जाते हैं.
कीड़ों के हत्यारों को सजा जरूर मिलेगी, 
तुम इत्मीनान रखो. 

बाकी कीड़े सहमे हुए हैं, 
वो जानते हैं कि इस बार बच गए हैं
सिर्फ अगली बार मरने के लिए,
कीड़े हर पल जिंदा रहने के लिए संघर्ष में हैं
इतना वक्त कहां है कि रुक कर उठ खड़े हों,
और गिरेबान पकड़ लें इंसानों का,
शाम को छोटे कीडे-मकौड़ों का पेट भी तो भरना है.