U TURN

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

आक्रोश और समाधान के बीच रायसीना का युवा आंदोलन

शहर की फिजां में जब दरिंदे खुले आम घूम रहे हों और कानून और व्‍यवस्‍था के इंतजामात नाकाफी साबित होने से पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा हो तो क्‍या कोई खामोशी से घर के भीतर बैठा रह सकता है. कॉमन मैन को देश में हमेशा फॉर ग्रांटेड ही लिया जाता रहा है. पर सिस्‍टम अक्‍सर भूल जाता है कि ‘दे आर रेजिलिएंट बाय फोर्स नॉट बाय च्‍वाइस’. खामोशी को मजबूरी समझने की समझ ने ही हमें आज इस मुकाम पर ला दिया है. पर अब इस देश की युवा शक्ति को ये हालत स्‍वीकार नहीं है. तथाकथित ‘बडों’ और ‘मैच्‍योर’ लोगों द्वारा युवाओं को गैर जिम्‍मेदार कह कर बार बार खारिज किया जाता रहा. पर आज इन्‍हीं गैर जिम्‍मेदार युवाओं की थोड़ी सी हिल गई तो न्‍याय के लिए अपनी बुलंद आवाज से जर्रे जर्रे को हिला कर रख दिया. आज 20 हजार लड़के-लड़कियां राजपथ पर न्‍याय की मांग को लेकर इस कसम के साथ उतरे कि जब तक उन्‍हें उनका हक नहीं मिल जाता वे जमीन नहीं छोडेंगे. 



मैंने खुद सुबह 09.00 बजे से अब तक के घटनाक्रम को अपनी आंखों से देखा और जिया....आज जो रायसीना की पहाडियों पर हुआ वो आज तक नहीं हुआ था. गुस्‍से का गर्दोगुबार उठा वो बस उठता ही चला गया, रायसीना की पहाडी पर ठीक हुक्‍मरानों के दरो-दीवार पर न्‍याय की आवाज बुलंद कर रही युवा शक्ति पर पानी की तोप के प्रहार, आंसू गैस के गोले, हवाई फायरिंग और लाठी चार्ज किया गया. दर्जनों लड़के लडकियां घायल हुए. शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे बच्‍चों, लडकियों और युवाओं पर पुलिस का हर जुल्‍म उनकी अदम्‍य शक्ति के आगे बौना साबित रहा. प्रशासन की बौखलाहट साफ देखी जा सकती थी और शायद सरकार भी इसे कोई राजनीतिक आंदोलन मानने की भूल कर रही थी. विजय चौक गुस्‍से में उबल रहा था और कोई सामने आकर इन आंदोलनरत युवाओं को एक बेहतर कल का वायदा करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. दमनचक्र चलता रहा लोग घायल होते रहे पर डटे रहे, लोग आते रहे और हर तरफ सिर्फ न्‍याय मांगते सिर बढ़ते रहे. रायसीना की पहाडियां जंग के मैदान में तब्‍दील होती गईं. बलात्‍कारियों के खिलाफ सख्‍़त से सख्‍़त कानून, फास्‍ट ट्रैक कोर्ट में स्‍पीडी ट्रायल, दिल्ली रेप केस के अपराधियों को फांसी की सजा और एक चुस्‍त प्रशासन की मांग लेकर सुबह शुरू हुई मुहिम इस वक्‍त भी इंडिया गेट पर जारी है. सवाल बहुत हैं पर जबाव कहीं नहीं है. ;;;; ;;;  



      सब हैरान हैं कि ये सब हुआ कैसे ?  दरअसल कुछ युवाओं ने चंद रोज पहले फेसबुक पर तय किया कि 21 तारीख को सुबह 09 बजे इंडिया गेट पर एक प्रोटेस्‍ट गैदरिंग होगी...... और देखते ही देखते हजारों लोगों ने खुद आने और अपने सगे संबंधियों और मित्रों को साथ लाने का वायदा किया और आयोजकों की उम्‍मीद से कहीं ज्‍यादा संख्‍या और उत्‍साह से आए. युवाओं द्वारा प्रयोग किए गए नारे और हाथों में पकडे स्‍लोगनों से उनके दिल का दर्द साफ समझा जा सकता था. यहां आने वालों की औसम उम्र 20 से 22 वर्ष रही होगी. हां उन्‍हें लीड़ थोडी बडी उम्र के साथी ही कर रहे थे. 

आज का यूथ प्रोटैस्‍ट शायद आर्गेनाइज्‍ड नहीं था. इसीलिए थोड़ा बेतरतीब भी था.....पर कुछ चीजें बेतरतीब ही सही होती हैं. तरतीब लगाने वाले लोग कुछ खास बदल नहीं पाते. ये किसी राजनीतिक दल या एक एनजीओ द्वारा संचालित नहीं था. इसे कोई एक व्‍यक्ति भी लीड़ नहीं कर रहा था. बस एक जज्‍़बा उन्‍हें आपस में बांधे हुए था. ये नया दौर है...जहां तकनीक ने आज विजय चौक को तहरीर चौक में तब्‍दील कर दिया है. भर सर्दी में दिल्‍ली के कौने कौने से 8.30 बजे से युवाओं की टोलियां कोई मौज मस्‍ती करने सड़क पर नहीं उतरी थी. पानी के गोलों और आंसू गैस के गोलों के सामने भी एक दूसरे का हाथ थामे डटे रहने वाले युवा शायद संकेत दे रहे हैं कि उनके धैर्य की परीक्षा न ली जाए. सब चलता है.....अब नहीं चलेगा. हजारों युवा सड़क पर जब दमन झेल रहे थे तब देश के बुद्धिजीवी लाइव टेलीकास्‍ट देख रहे थे. और हां शायद अभी भी कुछ लोग इसे दूध का उफान समझ कर जल्‍द बैठ जाने की गलती कर रहे थे.

प्रदर्शन के दौरान बढ़ते दबाव को देखते हुए भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अचानक ठंडे पानी की तेज धार से प्रहार शुरू हो गए....भर ठंड में गीले कपडों में युवाओं के धैर्य की परीक्षा ली जाती रही. फिर शुरू हुआ लाठी चार्ज, स्‍कूली बच्‍चों और लड़कियों पर भी जमकर लाठियां भांजी गईं और फिर अश्रु गैस के गोलों की फायरिंग....हर तरफ धुंआ और आंखों में जलन. अचानक एक गोला मेरे नजदीक खडी एक लड़की के पैर पर आकर लगा....लड़की गिरती है और पैर से खून की धार निकल पड़ी. कुछ युवाओं ने उसे उठा कर एम्‍बुलेंस में पहुंचाया... तभी दो तीन और धमाके हुए.... भगदड़ हुई और देखा कि इस फायरिंग में कई लोग जख्‍मी हो चुके हैं. भीड़ का रेला कुछ गज पीछे हटा....कुछ लोग और घायल हुए.... थोड़ी देर बाद जब पानी की धार बंद हुई....युवाओं की ये फौज फिर से समरभूमि के फ्रंट पर मौजूद थी. सारा दिन ये गुरिल्‍ला युद्ध विजय चौक पर जारी रहा. पर आग दिल में लगी थी सो पीछे हटना गवांरा नहीं था...सो हक की जिद जारी रही. एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन को मासूमों पर हमला कर प्रशासन ने स्‍वयं इसे आक्रोश की पराकाष्‍ठा तक पहुंचा दिया. जहां जुबान से बात हो सकती थी वहां लाठी चल रही थी. खैर शाम तक कुछ कुर्सियां हिलीं और प्रेस वार्तांए हुईं ...कुछ को सस्‍पेंड किया गया, तमाम नए वायदे किए गए. एक बात समझ नहीं आती ....जब तक बवाल ने मचे हम कुछ क्‍यों नहीं करते?

टीआरपी की भूख मीडिया को भीड़ के पीछे चलने और सनसनी को हवा देने को मजबूर कर देती है. आज भी वही हुआ सुबह 10 बजे तक जब सब कुछ शांतिपूर्ण था कुछ बेनाम से टीवी चैनल और कुछ प्रेस फोटोग्राफर मैदान में थे....और युवाओं के गगनभेदी नारे भी नक्‍कार खाने में तूती की तरह बोल रहे थे. शांतिपूर्ण प्रदर्शन की कवरेज पर कहां टीआरपी मिलती है साहब. पर दस बजते-बजते रायसीना की तस्‍वीर बदलने लगी. भर सर्दी में भी माहौल में तपिश बढ़ रही थी....पुलिस अटैक की तैयारी कर चुकी थी. हम देख सकते थे एक पुलिस बस के ऊपर मचान बनाए कुछ मीडिया कर्मी लगातार फोन कर अपने साथियों को बुलाने में जुटे थे. बस फिर क्‍या था.....कुछ मिनटों में ही तमाम ओबी वैन ने पड़ाव डाल लिया. और लाइव रिपोर्टिंग शुरू. कुछ ने तो इसे अपनी मुहिम बताने का अभियान भी चलाया हुआ है. अगर थोडी भी गैरत मीडिया में बची हो तो ये राजनीति बंद कर दें.

युवा जब भी कुछ नया करते हैं तो उससे उपजी उम्‍मीदों को खामख्‍याली ही समझा जाता है....इस बार भी ऐसा हो सकता है. पर अब वक्‍त बदल रहा है.....इस देश को अब युवा शक्ति ही चलाएगी. चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो या सामाजिक हो....युवा अब हर मोर्चे पर मुखर हो रहा है. जितना इसे नज़रअंदाज किया जाएगा ये उतना ही प्रखर होगा.....और सबसे अच्‍छी बात ये है कि युवा किसी मुद्दे पर जुटने से पहले जात धर्म और बिरादरी की पड़़ताल नहीं करता है उसका धर्म उसका युवा होना ही है.  ये आंदोलन पूरी तरह युवा शक्ति का आंदोलन है. आज के प्रदर्शन में कोई राजनीतिक दल दूर दूर तक नज़र नहीं आया. लेकिन एक प्रश्‍न आज का आंदालन पीछे छोड़ गया है इस आंदोलन में मैच्‍योर और उम्रदराज लोग नज़र नहीं आ रहे हैं. क्‍या ये लड़ाई केवल युवाओं की है ? युवा शक्ति दरअसल कितनी जिम्‍मेदार और संवेदनशील है ये कोई भी तभी जान सकता है जब वह उनके साथ अश्रु गैस के गोले झेले, पानी की तोप के आगे डटे या लाठी खाए. सेमिनार में भाषण देना या घरों के अंदर उपदेश देना बहुत आसान है.

ये आंदोलन एक शुरूआत भर है...यकीनन ये आधी आबादी का पूरा इंकलाब था. पर हां, इसकी दिशा को लेकर हमें सचेत रहना होगा. दिशा भटकते ही कोई भी आंदोलन अपना महत्‍व खो देता है. किसी साफ नेतृत्‍व के अभाव में यह संकट इस आंदोलन पर भी हावी है. इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे युवाओं को अब जल्‍द से जल्‍द आपस में एक व्‍यवस्था बनानी होगी जिसमें वे मिलकर तय कर सकें कि कब क्‍या और कितना करना है ताकि ये आंदोलन अपनी ऊर्जा न खोए और न बिखरे...क्‍योंकि दिल्‍ली से शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज अभी देश के कौने-कौने तक पहुंचनी है. हजारों बलात्‍कार पीडिताएं अभी न्‍याय के इंतजार में हैं.

इस आंदोलन का एक उद्देश्‍य जनता को जागरूक करना भी है. जो संवेदनाएं मर चुकी हैं या सो चुकी हैं उन्‍हें जगाना भी है. इंसानियत हर दिल में अभी मरी नहीं है. पर जिनके दिल में मर गई है उनके लिए मातम मनाने का वक्‍त नहीं है अब हमारे पास. हमें अलख जगानी होगी....जो दूसरे का दर्द समझते हैं वे हाथ मिलाएं और आगे बढ़ें. जिस समस्‍या से हम जूझ रहे हैं वह प्रशासनिक बहुत बाद में पहले मानसिक और फिर सामाजिक भी है. सरकार बहुत बाद में आती है. हां, सड़क पर चलता हर आदमी पुलिस है यदि वह किसी लड़की के साथ ज्‍यादती होते हुए देख कर विरोध करता है,  उसकी सहायता करता है. और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह भी अपराध में अपराधी का साथ ही दे रहा है. हर व्‍यक्ति को खुद की जिम्‍मेदारी भी समझनी होगी.

और हां, मैं समझता हूं कि आज जो हुआ उससे व्‍यवस्‍था ने सबक लिया होगा. शायद आज युवा दुष्यंत जी के शब्‍दों में यही कहना चाहते हैं कि

‘महज़ हंगामा खड़ा करना मेरा महसद नहीं,
      मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.....’ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut achchha write-up hai Saurabh! yah waqai ek anokha din tha, aaj maine yuvashakti ko pratyaksh room me mahsoos kiya...bahut sateek nishkarsh bhi nikale hain tumne....ummeed hai ki yuvaon ke yar prayas kuchh thos parivartan lekar aayenge....

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  2. ....बहुत अच्‍छा विश्‍लेषण...ग्राउंड जीरो की तपिश के साथ....भावात्‍मक और सामाजिक निहितार्थो को उजागर करता हुआ...आपने ठीक कहा कि बड़ा प्रश्‍न हमारी संवेदना का है...ऐसे आंदोलन हमारे सामने आईना रख देते हैं....

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  3. बहुत रोचक और सत्य को दर्शाता लेख है सौरभ। मुझे आपका ये सवाल अच्छा लगा की क्या कुछ करने के लिए हमें हमेशा बवाल की ज़रूरत है। क्या सरकार इस क्राइम की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए पहले ही कुछ कदम नहीं उठाने चाहिए थे। खैर अब तो सरकार को शायद आदत हो गयी है अपनी देश की जनता की गालियाँ सुनने की। इसलिए अब समय सुनाने का नहीं बल्कि कुछ कर-गुजरने का है।

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  4. बहुत ही शर्मनाक थी वो धटना जो उस मासूम के साथ घटी औऱ उस से भी शर्मनाक है भावनाशून्य हो चुके मीडिया और राजनीतिक दलों की भूमिका जो इस हादसे की आंच पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकने में लगे हैं.. शायद इन्हे अभी तक ये समझ में नही आया कि एक छोटी सी चिंगारी भी कभी-कभी पूरे जंगल को तबाह कर देती है।
    अपनी तरफ से तमाम युवा साथियों को बस यही दो लाईने कहना चाहूंगा...

    हवा के साथ भी रिश्ते पूराने हैं..
    मगर चिराग तो हर हाल में जलाने हैं"

    विनीत बंसल

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  5. गहराई से अगर अनुसंधान किया गया तो इस घटना के अलावा भी कई परतें खुलेंगी जो भेड़ियों के दल ने अंजाम दी होंगी | ये भी मुमकिन है के इस से पहले इन्हों ने कई लडकियां इसी तरह सडक पे मार के फेंक दी होंगी जिन्हें सड़क दुर्घटना की शिकार मान कर अंतिम विदाई दी जा चुकी होगी | इन से गहन पूछताछ जरूरी है | उम्मीद है पुलिस आधीक्षक छाया शर्मा इस दृष्टी से पूछ ताछ जरूर करेंगी |
    आपकी संवेदना, जागरूकता और लेखन दक्षता सराहनीय है |
    मैं उस पीडिता के लिए कोटि कोटि प्रार्थना आपके माध्यम से प्रस्तुत करता हूँ

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