U TURN

मंगलवार, 4 जून 2013

मन के समंदर में डूब नि:शब्‍द छोड़ गई जिया...


फिल्‍म अभिनेत्री जिया खान खुदकुशी करके सभी को नि:शब्‍द छोड़ गई हैं. कुछ बुरी ख़बरों पर यकीन नहीं होता. शायद जिया भी निराशा और अवसाद से भरे उस बुरे वक्‍त का शिकार हुईं जिसमें डूब कर बाहर आना हर किसी के बूते का नहीं होता. अभी कल शाम एक चैनल पर फिल्‍म अभिनेता धर्मेन्‍द्र का इंटरव्‍यू देख रहा था. धर्मेन्‍द्र की साफगोई से कही गई एक बात ने बड़ा प्रभावित किया 'शोहरत का अंत हमेशा गुमनामी में होता है'. ये बात और है कि धर्मेन्‍द्र उस दौर से खुद गुजरे और लड़कर बाहर निकले. पर हर कोई इतना नसीबवाला नहीं होता. कुछ मीडिया रिपोर्टों से पता लग रहा है कि दुर्भाग्‍य से जिया भी इसी सब से गुजर रही थी. ऊपर से हंसते हुए लोगों के भीतर कितने बेचैन समंदर उफान मारते हैं....हम नहीं देख पाते. 

ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार जिया के साथ ही हुआ हो...इस सपनों की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए न जाने कितनी जिया हर पल घुट घुट कर अपनी जिंदगी तमाम कर रही हैं. जब बुरा वक्‍त आता है तो कई मोर्चों पर इंसान को तोड़ता है. जिया को पिछले कुछ समय से काम नहीं मिल रहा था...उनकी मां के मुताबिक अब वो इंडस्‍ट्री को छोड़ कर कोई अपना काम शुरू करना चाहती थी और घर लौटना चाहती थी. इंडस्‍ट्री ने उसे जो शोहरत दी वो ज्‍यादा दिन साथ न दे सकी. ग्‍लैमर की दुनिया के अपने उसूल हैं...यहां जो जितना ऊपर चढ़ता है उसके नीचे गिरने का खतरा भी उतना ही बढ़ जाता है....और जब गिरने का वक्‍त आता है तो संभालने वाले दूर तक नज़र नहीं आते. पहले भी कई अभिनेत्रियां डिप्रैशन का शिकार होकर अपनी जिंदगी का अंत कर चुकी हैं. जिया की जिंदगी में डिप्रैशन की वजह केवल काम न मिलना था या कुछ और भी था जिसने उसे पूरी तरह तोड़ दिया ये अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा. मगर इस कलाकार की मौत ने एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया कि ये चमक दमक की दुनिया और दुनिया की चमक-दमक कितनी खोखली है.

बुलंदिया पर पहुंचना हुनर कभी नहीं होता....हुनर है बुलंदियों पर पहुंच कर संतुलन बनाए रखना. एक कलाकार का दुखद अंत इस जगमगाती दुनिया के कड़वे सच को रेखांकित करता हुआ हर बार निराश कर जाता है.

सिनेमा के महान चित्रकार का यूं चले जाना....

सिनेमा की दुनिया के महान चित्रकार रितुपर्णो घोष के साथ यह तस्‍वीर 5 अगस्‍त, 2012 की रात 8 बजकर, 53 मिनट पर ली गई थी. रितुपर्णों बीते गुरूवार को इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. शायद इसीलिए कहा जाता है कि जिंदगी बहुत छोटी है. यहां से कब कौन चला जाएगा ....नहीं कहा जा सकता. ओसियान फिल्‍म फैस्‍टीवल का समापन उस रात घोष की फिल्‍म चित्रांगदा की स्‍क्रीनिंग के साथ ही हुआ था. फिल्‍म खत्‍म होने पर जब बाहर निकले तो रितुपर्णों बाहर मिल गए. फिल्‍म में उनके शानदार अभिनय के लिए मैंने और मेरे कुछ मित्रों ने उन्‍हें बधाई दी. एक मित्र ने जैसे आने वाले वक्‍त को देख लिया था....और कहा कि रितुपर्णों जी के साथ एक तस्‍वीर हो जाए फिर पता नहीं कभी दोबारा मिल पांए या नहीं. उनसे अनुरोध किया तो मुस्‍कुराकर इनायत कर दी और अब मेरे पास उनकी यह याद शेष है. रितु दा के अभिनय और निर्देशन का जादू ऐसा था कि उनकी लगभग हर फिल्‍म को किसी न किसी श्रेणी में राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से नवाजा गया और तमाम अंतराष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से भी. अभी चंद रोज पहले की कहीं पढ़ा था कि वे व्‍योमकेश बख्‍शी के जासूसी चरित्र पर आधारित अपनी नई फिल्‍म 'सत्‍यानवेषी' की शूटिंग समाप्‍त कर चुके हैं...मानवीय संबंधों की जटिलताओं और तमाम मानवीय पहलुओं को संवेदनशीलता के साथ सिल्‍वर स्‍क्रीन पर रचने वाला वो चित्रकार चला गया. यह अपूर्णीय क्षति है....और मैं अभी भी इस ख़बर पर विश्‍वास नहीं कर पा रहा हूं.