U TURN

बुधवार, 6 जुलाई 2011

'आई हेट यू, लाइक आई लव यू'.








पिछले शुक्रवार से सुर्खियां बटोर रही फिल्‍म डेल्‍ही बेली पर कुछ ब्‍लॉग पढ़े । कुछ लेखक बंधु इसे हिन्‍दी सिनेमा में नए प्रयोग तो कुछ इस फिल्‍म की भाषा को यूथ की भाषा कहकर महिमामंडित करने में जुटे थे और मौहल्‍ला लाइव पर मिहिर पंड्या इसे स्‍त्री के समर्थन में खड़ी फिल्‍म करार दे रहे थे। कुछ संशय था सो कल शाम कनॉट प्‍लेस के ऑडियन सिनेमा में ये फिल्‍म देख डाली। इस थियेटर का चयन भी मैंने मिहिर के तर्कों को कसौटी पर परखने के लिए किया कि क्‍या देहली बेली वाकई स्‍त्री के साथ खड़ी है। दिल्‍ली का कनॉट प्‍लेस दिल्‍ली ही नहीं देश के संभ्रात कहे जाने वाले धनाड्य परिवारों का पसंदीदा इलाका है। देश भर में जो आसानी से हलक के नीचे न उतरे उसके यहां आसानी से हजम हो जाने के ज्‍यादा चांसेज हैं। पर यहां फिल्‍म से पहले, फिल्‍म के दौरान और खास तौर पर फिल्‍म के बाद लोगों (विशेषकर युवतियों/महिलाओं) की प्रतिक्रिया दिलचस्‍प थी। मैं फिल्‍म का मूल यानि कि अंग्रेजी वर्शन देख रहा था...भाषा किसी संस्‍कृति की सीधी प्रतिनिधी होती है और यही काम यहां अंग्रेजी कर रही थी...जो गालियां कहीं कहीं अंग्रेजी में अत्‍यंत सहज लग रहीं थी उनके हिंदी अनुवाद की कल्‍पना मात्र से ही सिहरन पैदा हो रही थी। हां, इसके हिन्‍दी वर्शन के कुछ संवाद कान खड़े करने वाले हैं...जिन्‍हें ऐसा होने से बचाया जा सकता था...पर शायद जानबूझ कर रखा गया था। गंदा है पर क्‍या करें धंधा है की फिलॉसफी पर बेशर्मी को भी लैजिटिमेट का दर्जा कैसे दिया जाए कोई इनसे सीखे। फिल्‍म में गाली कहीं कहीं जम रही थी तो वहीं ज्‍यादातर जगहों पर जबरदस्‍ती जमाई गई प्रतीत हो रही थी।

  मेरी बगल वाली सीट पर एक युवती जो अपने ब्‍वॉयफ्रेंड के साथ फिल्‍म देखने आई थी, पूरी फिल्‍म के दौरान उसका हाथ तो मुंह पर था पर हां हर अल्‍ट्रा-बोल्‍ड और हाजमा बिगाडने वाली चीज पर हल्‍का सा ठहाका लगाकर एक '' सर्टिफिकेट फिल्‍म को 'यू' सर्टिफिकेट वाली फिल्‍म के अंदाज में देखने और खुद को असहज स्थिति से बचाने/ हाजमा ठीक रखने की असफल सी कोशिश करती रही। पूरी फिल्‍म के दौरान 'ओह शिट्ट' और 'ओह फक' के स्‍वर गुंजायमान थे सवाल था कि जिस तरह से उपरोक्त दोनों हैल्पिंग वर्ब्‍स को हमारे समाज (खासकर मैट्रो शहरों का युवा वर्ग)ने आसानी से पचाया है वैसे ही वे नई गालियों और नई हैल्पिंग वर्ब्‍स को पचाने में सक्षम हैं या नहीं। फिल्‍म हर फ्रेम के साथ आपको चौंकाती है...जिसकी आप उम्‍मीद नहीं करेंगे वही वही देखने को मिलेगा। सिनेमा में नए प्रयोग की दुहाई के नाम पर शायद आमिर ख़ान समाज के हाजमे की ताकत का ही जायजा ले रहे हैं। डीके बोस यूं ही नहीं भागा उसे बहुत सोच समझ कर भगाया जा रहा है...यत्र तत्र सर्वत्र बरसती गालियों और नवस्‍थापित स्‍लैंग्‍स पर शायद सेंसर बोर्ड बीप का बटन दबाना ही भूल गया। पेशे से अनुवादक होने से दिमाग खुद ब खुद हर नई गाली का निकटतम हिन्‍दी पर्याय ढूंढ रहा था पर फिल्‍म का हिंदी वर्शन तैयार हो चुका है और दौड़ रहा है। कोई आश्‍चर्य नहीं था कि ऐसे शब्‍दों के अनुवाद से उपजी कुरूपता को निर्माता निर्देशक भाषा के मत्‍थे जड़ देगा और इस क्‍लासिकल नंगई से खूब पैसा वसूलेगा । मुझे कहीं भी ये फिल्‍म स्‍त्री के साथ खड़ी दिखाई न‍हीं दी...फिल्‍म की नायिका हां नायिका कहना ही उचित होगा, सिगरेट पीकर, टूटे शीशे की कार में खुलेआम लंबा चुंबन देकर या फिर होटल के कमरे में गरम आवाजों से आफत टाल कर क्‍या वास्‍तव में एक सशक्‍त स्‍त्री के प्रतिमान स्‍थापित कर रही है। साफ दिखता है कि निर्माता ने बड़ी चतुराई से इस सॉफ्ट पोर्न नुमा चीज को सिनेमा का नया प्रयोग करार दिया है। देहली बेली टिटिलेशन देने में तो सफल नज़र आती है पर कोई संदेश देने में नाकाम ही रही। ये सारे प्रयोग/हरकतें 'प्‍यार का पंचनामा' में भी किए गए पर एक कंट्रोल्‍ड अंदाज में । शायद कुछ लोग बहुत सोच समझ कर सिनेमा को एक नई दिशा दे रहे हैं। मुझे पूरा यकीन है जल्‍द ही दर्शक इन घटिया हथकंडों को नकार देगा। फिल्‍म की समाप्ति पर भीड़ पर मेरे आगे चल रही लड़की ने जब अपने साथी से कहा ''यू नो !! दे हैव डैलीब्रेटली पुट ऑल दिस...ओह गौड़. इट वॉज़ टू मच'' तो फिल्‍मकार की नीयत साफ हो गई। वो समझता है कि दर्शक बेवकूफ है. 

      आमिर के पूर्व के नायाब प्रयोगों का जितना स्‍वागत किया गया शायद उतना ही देहली बेली के इस तथाकथित प्रयोग को नकारा जाना चाहिए। आमिर के लिए मैं इतना ही कहना चाहूंगा....'आई हेट यू, लाइक आई लव यू'.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें