एक भयभीत नागरिक की भय भरी श्रृद्धांजली उसके लिए
जिसके मरने के बाद भी लोग उससे डरते हैं.
डरो ! थर थर कांपो,
कि वो चला तो गया है,
पर छोड़ गया है दबंगई और गुंडई की विरासत !
डर ही जन्मेगा तुम्हारे भीतर श्रृद्धा के फूल,
डर ही सनातन सत्य है मुंबा देवी की नगरी का,
क्या फर्क पड़ता है कि कब, किससे, कितना डरना है !
सवाल मत करो,
जिंदा हो यही क्या कम है?
अपने जीवित होने का उत्सव मनाओ,
देखो वो बड़े पर्दे वाले, पर्दों के पीछे वाले,
हाथ जिनके लालमलाल, और कर्मों से काले,
सब श्रृद्धा से जुड़े हैं और उनकी आंखे नम हैं !
अरे देखो वो भीड़ का रेला,
कभी न देखा सुना,
ये गीत है उसकी महानता का,
तुम भी गाओ, आओ भीड़ में शामिल हो जाओ,
तुम्हें अभयदान नहीं चाहिए क्या?
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